Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ज़ंजीरे-आदत

 

कौन कहता है कि दुनिया ख़ूबसूरत है।
कितनी ये ख़ुदगर्ज कितनी बेमुरब्बत है।।

 

वक़्त की हर एक धड़कन है डरी सहमी।
हर शहर हर गाँव में ये आज हालत है।।

 

इक चुनौती है यहाँ बेदाग़ होना भी।
यह नहीं कोई फ़साना, इक हक़ीक़त है।।

 

हर तरफ़ जमात अब मतलब परस्तों की।
अब महज मिलती किताबों में मुहब्बत है।।

 

बाद में यूँ फेंकते,ज्यों दूध से मक्खी।
काम जब तक आप से,हर साँस खिदमत है।।

 

भा रहीं अलगाव की बातें ज़माने को।
फिर भला सद्भाव की किस को ज़रूरत है।।

 

हम अगर सच बोलते हैं जब कभी तो फिर।
एक स्वर में लोग कहते,यह शरारत है।।

 

बाज वो आते नहीं हैं छल-कपट से 'सिद्ध'।
और कहते क्या करें ज़ंजीरे-आदत है।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

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