भ्रम जालों में पलते हैं हम।
नित्य स्वयं को छलते हैं हम।।
हम 'मति-हीन' हुए तो-
जीवन-धारा रुक जाएगी।।१।।
पल-पल दिशा बदलते हैं हम।
आशंकित से चलते हैं हम।।
हम 'गति-हीन' हुए तो-
जीवन-धारा रुक जाएगी।।२।।
प्रेम-ताप से जलते हैं हम।
फिर भी नहीं पिघलते हैं हम।।
हम 'रति-हीन' हुए तो-
जीवन-धारा रुक जाएगी।।३।।
ठाकुर दास 'सिद्ध',
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