मीठी ज़ुबान वाले,झूठे हैं यार यारा ।
मौके की ताक में हैं,करने शिकार यारा।।
हर बात रही बाहर,कानों में रखे फाहे ।
कर-कर के ज़ुबाँ हारी,सिकवे हज़ार यारा।।
जो कर रहे हैं जय-जय,वो बेच चुके ख़ुद को।
जो भी है काम उनका,बस निराधार यारा ।।
आसीन सिंहासन पर,अब छल-ओ-कपट होगा।
ताने हुए है सीना, अब दुराचार यारा ।।
हर शख़्स यहाँ दीखे,पैसे के लिए पागल ।
जाने ये हर किसी को,कैसा बुखार यारा।।
दीवारे-महल जैसे,दीवार दो दिलों की ।
टकरा के लौट आती,बेवस पुकार यारा।।
झूठों के इस शहर में,सच जो भी 'सिद्ध' बोले।
लिखते ललाट पर हैं,खल-गुनहगार यारा ।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY