Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिनके सर पर संदेहों के बादल छाए हैं

 

जिनके सर पर संदेहों के बादल छाए हैं।
मुझ से मिलने घर पर मेरे क़ातिल आए हैं।।

 

पल-पल रंग बदलना उनका जब से देखा है।
गिरगिट लज्जा से मुख अपना रहे छिपाए हैं।।

 

रोज़ नया नाटक होता है उनकी महफ़िल में।
दिल में है क्या बात, किसी को नहीं बताए हैं।।

 

न्यौता हम को दिए भोज का कुटिल इरादों से।
भेद-भाव का गरल डाल कर,खीर पकाए हैं।।

 

ले जाएँगे ठोस धरा से,हम को दलदल में।
नरमाहट के नित सतरंगी ख़्वाब दिखाए हैं।।

 

तीर चलेंगे मुस्कानों के अब मतलब से 'सिद्ध'।
आकर आतिशबाज दिलों में आग लगाए हैं।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

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