Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ज़िन्दगी का हक़ नहीं

 

देखिएगा सींग उनके सर लगे।
ये ज़माना वेदना का घर लगे।।

 

भाल पर उनके लगे चंदन यहाँ।
और अपने भाल पर पत्थर लगे।।

 

अब ज़मीं पर पैर पड़ते ही नहीं।
देह पर उनकी यकायक पर लगे।।

 

आदमी बिलकुल निहत्था है खड़ा।
हाथ में शैतान के खंजर लगे।।

 

कह रहा बेदाग़ वह ख़ुद को मगर।
दामन उसका ख़ून से है तर लगे।।

 

अब लुटेरों की यहाँ पर मौज़ है।
शेष सबकी ज़िन्दगी जर्ज़र लगे।।

 

तोड़ना है अब भरम उसका हमें।
गर बुरा उसको लगे जी भर लगे।।

 

ज़िन्दगी का हक़ नहीं उसको ज़रा।
मौत का है 'सिद्ध' जिसको डर लगे।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ