(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
जिस नज़र बादशाह करते हैं,
वो उसी से तबाह करते हैं।
डूबते हम तो वाह करते हैं,
यार ये क्या गुनाह करते हैं।
भार कुछ कम हुआ सा लगता है,
जो क़दम उन की राह करते हैं।
अब लगे कम हुई मुहब्बत कुछ,
अब लगे बेपनाह करते हैं।
और कोई न देख पाता जो,
रोशनी ख़्वाबगाह करते हैं।
'सिद्ध' हम भी कहाँ हैं कम उन से,
उन से उन की ही चाह करते हैं।
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