Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जो ज़रूरी हो निहायत

 

जो ज़रूरी हो निहायत, नहीं मिलता।
करता छुप-छुप के शरारत,नहीं मिलता।।

 

साथ साया भी हर वक़्त कहाँ देता है।
कोई सँग वक़्त-ए-मुसीबत,नहीं मिलता।।

 

यूँ तो मिलते हैं ज़माने में हज़ारों ।
जिसकी होती है ज़रूरत, नहीं मिलता।।

 

इस क़दर खौफ़ है शैतान का बरपा।
करता कोई भी शिकायत, नहीं मिलता।।

 

नकली चिहरों का यूँ चलन चल निकला।
फरेब मिलता है,हक़ीक़त, नहीं मिलता।।

 

जो न बाँधे है तारीफ के पुल यारा।
उसको फिर नज़रे-इनायत, नहीं मिलता।।

 

 

कोई घर पर है, कोई बाज़ारों में ।
कहीं पर यकीने-हिफ़ाजत,नहीं मिलता।।

 

गुजरा होगा कोई तूफ़ान यकीनन।
कोई घर 'सिद्ध' सलामत, नहीं मिलता।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ