(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
जो लबों तक इक लबालब जाम आया।
याद मुझ को इक ज़रूरी काम आया।।
दिल हथेली पर लिए उस तक गया मैं।
बेदिली देखो कि दिल का दाम आया।।
ये सुना मैंने कि उस की आँख नम थी।
जिक्रे-उलफ़त में मिरा जो नाम आया।।
देख उस को थम गई जो साँस मेरी।
लग रहा है अब ज़रा आराम आया।।
कुछ पता जिसमें न जिसमें कोई मजमूँ।
'सिद्ध' कोरे ख़त में क्या पैगाम आया।।
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