Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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काम की मजबूरियाँ कह कर

 

कौन, कब, किसको यहाँ पर है, कहो ठहरा।
जब रहा मतलब कोई, वह सिर्फ़ तो ठहरा।।

 

हो तो कैसे दीन-ओ-दुनिया की ख़बर उसको।
इश्क में डूबा हुआ वो शख़्स जो ठहरा।।

 

चलना होगा आपको, यूँ वक़्त सा हर दम।
वक़्त चलता ही रहा, कब आपको ठहरा।।

 

जिस तरफ़ से आ रही लेकर हवा ये महक।
है ये मुमकिन, उस तरफ़ ही यार हो ठहरा।।

 

जो रहे चालाक, उनका चल गया सिक्का।
पर सफलता का यहाँ हर हाल गो ठहरा।।

 

चल दिया वो, काम की मजबूरियाँ कह कर।
मिलने आया, और वो पल एक-दो ठहरा।।

 

बेतहाशा भागती दुनिया में था वह गुम।
'सिद्ध' की आवाज सुनकर आज वो ठहरा।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

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