Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहा सच, ये न सोचा, कौन माने है

 

कहा सच, ये न सोचा, कौन माने है।
खड़ा वो झूठ का डंका बजाने है।।

 

ख़ता क्या आईने से हो गई कोई।
नज़र का तू जो उस पर तीर ताने है।।

 

भरा सा जख़्म ये दिख तो रहा लेकिन।
कसक मेरी न कोई और जाने है।।

 

सितारों से सजी चादर उढ़ौना है।
बिछाना क्या, ज़मीं जो है, बिछाने है।।

 

हक़ीक़त 'सिद्ध' परदों में छुपी रहती।
मुखौटा याँ ज़माने को दिखाने है।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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