Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क़ैद ख़्वाबों की सुहानी

 

 

क़ैद ख़्वाबों की सुहानी लग रही है।
अब गजब ये ज़िन्दगानी लग रही है।।

 

इस अदा से आज है उसने सुनाई।
इक हक़ीक़त सी कहानी लग रही है।।

 

आज की लगती नहीं आदत सितम की।
यार ये तो खानदानी लग रही है।।

 

भीड़ यारा देखिए तो राह पर है।
राह से भटकी जवानी लग रही है।।

 

देख ली मुस्कान उसकी आँख की जो।
'सिद्ध' को अब जान जानी लग रही है।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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