ज़ख़्म बेशुमार जो हुए।
नोकदार खार जो हुए।।
कैसे ना कराहते सनम।
सितम बार-बार जो हुए।।
झूठ-मूठ रूठ ही गए।
उनके तलबगार जो हुए।।
किस लिए पहचानते हमें।
आज वो सरकार जो हुए।।
साजे-सुकूँ मिल गए उन्हें।
शख़्स गुनहगार जो हुए।।
फ़िक्रे-अमन उनकी ज़ुबाँ से।
देखिए ख़ूँ-ख्वार जो हुए।।
उनकी दगाबाज़ियाँ चलीं।
'सिद्ध' समझदार जो हुए।।
ठाकुर दास 'सिद्ध
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