(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
लिख रहा हूँ मैं अभी जो हाल का सितम।
है सवाल ये, कि है सवाल का सितम।
पुर-सुकून ज़िन्दगी में डाल के ख़लल,
पूछता है हाल, ये कमाल का सितम।
क्यों न वोट डाल के हम फ़ैसला करें,
कह रहा है तिल का तू, कि गाल का सितम।
रोटियों की बात हम करेंगे बाद में,
जो न गल सकी जनाब, दाल का सितम।
हाँ हमें बुरी तरह निढाल कर गया,
ख़ंजरों के साथ-साथ ढाल का सितम।
'सिद्ध' और जो सितम थे, ख़ैर ठीक थे,
जो चली है यार ने, है चाल का सितम।
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