Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहीं वो ग़ज़ल तो नहीं

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

 

ज़माना सरल तो नहीं।
परोसा गरल तो नहीं।।

 

अँधेरे में रोशन दिखा।
किसी का महल तो नहीं।।

 

भटकता फिरे है कोई।
हुआ बेदख़ल तो नहीं।।

 

मिली है हुकूमत उसे।
दुखी आज-कल तो नहीं।।

 

मिरे जख़्म के रंग सी।
खड़ी है फसल तो नहीं।।

 

कहें क्या मुलाकात हम।
मिला एक पल तो नहीं।।

 

नहीं दीखता आज-कल।
गया वो निकल तो नहीं।।

 

कही 'सिद्ध' ने जो अभी।
कहीं वो ग़ज़ल तो नहीं।।

 

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