काटती ये रात ढलना चाहिए।
बात अब कुछ तो बदलना चाहिए।।
प्रीत में हर बात का हल है निहित।
नफ़रतें दिल से निकलना चाहिए।।
भीड़ बढ़ती जा रही है बेहिसाब।
आदमी को राह मिलना चाहिए।।
मंजिलें जब आएँगीं तब आएँगीं।
वक़्त सा हर वक़्त चलना चाहिए।।
वक़्त आने पर असर दिखलाएगी।
एक चिंगारी को जलना चाहिए।।
ना करे इजहार वह, चल जाएगा।
दिल में लेकिन प्रीत पलना चाहिए।।
'सिद्ध' वो लड़ जाएगा हक़ के लिए।
अपने हक़ को दिल मचलना चाहिए।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY