Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खल ख़ुश दिखे

 

हो गई हैं तेज़ यारो आँधियाँ खल ख़ुश दिखे।
ढह गया है आज कोई आसियाँ, खल ख़ुश दिखे।।

 

आज चारों ओर उसने बो दिया बारूद है।
अश्क़ के सागर में डूबीं कश्तियाँ, खल ख़ुश दिखे।।

 

बंद थीं दूकान उनकी जब अमन था हर तरफ़।
खौफ़ के साए में हैं अब बस्तियाँ, खल ख़ुश दिखे।।

 

पहरेदारों को खरीदा जा चुका है दोस्तो।
साथ चोरों के हुई हैं चाबियाँ, खल ख़ुश दिखे।।

 

आज उनने छोड़ कर सच, झूठ को अपना लिया।
इस तरह हक़ में हुई हैं बाजियाँ, खल ख़ुश दिखे।।

 

कौन सोचे भूख से मरते हुए इन्सान की।
तितलियों के साथ खाते मछलियाँ, खल ख़ुश दिखे।।

 

वह नहीं सुनते किसी की होश की बातें यहाँ।
जाम भरते ज़िन्दगी में मस्तियाँ,खल ख़ुश दिखे।।

 

दोस्ताना बात चोरों से सिपाही कर रहा।
जो लुटा टूटी उसी की पसलियाँ,खल ख़ुश दिखे।।

 

देखिए इन्साफ़ का घर भर गया दुर्गंध से।
चाटती हैं धूल सारी अर्जियाँ,खल ख़ुश दिखे।।

 

'सिद्ध' सारे आसमाँ पर मेघ काले घिर चुके।
आज हैं तैयार गिरने बिजलियाँ,खल ख़ुश दिखे।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

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