Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खल की हलचल जारी बाबा

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

खल की हलचल जारी बाबा।
उसके हाथ कटारी बाबा।।

 

शैतानों को हँसते देखा।
क्या मानवता हारी बाबा।।

 

होली होते देख ख़ून की।
रोती है पिचकारी बाबा।।

 

कैसे हो उस से समझौता।
नीयत जिस की कारी बाबा।।

 

वह हम से मिलने आया है।
छल है या लाचारी बाबा।।

 

उसने हम पर वार किया है।
अब है अपनी बारी बाबा।।

 

हमको अब सागर मथना है।
सुन ले बात हमारी बाबा।।

 

तेरे छल अब नहीं चलेंगे।
चल उठ, उठा पिटारी बाबा।।

 

'सिद्ध' नहीं छोड़ेगा उसको।
जो है अत्याचारी बाबा।।

 

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