(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',
खिला-पिला के काम करा ले।
भाट मिलेंगे, नाम करा ले।।
पैसा हो तो सबकुछ होगा।
दोपहरी में शाम करा ले।।
सूरज भी बिकने को आतुर।
रातों को भी घाम करा ले।।
केवल कीमत देनी होगी।
प्रतिद्वंद्वी बदनाम करा ले।।
दाम-सूची में दाम देख ले।
हो-हल्ला कुहराम करा ले।।
मन चाहे बिलकुल काला हो।
रंग बिरंगी चाम करा ले।।
पैसे से काया बदले है।
बूढ़े को गुलफाम करा ले।।
नेता बिकते, अफ़सर बिकते।
गोपनीय को आम करा ले।।
अरे 'सिद्ध' क्या सोच रहा है।
मन माफिक अंजाम करा ले।।
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