Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खिंच जाएगी खाल

 

पानी अपनी उम्मीदों पर फिरता आया।
है जन-जन का,मौसम-मौसम मन मरझाया।।
जो ऊँचे पद पर बैठे हैं,वे नाचें बेताल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना,खिंच जाएगी खाल।।१।।

वहाँ खनकते रहते मदिरा के नित प्याले।
और यहाँ जल की बूँदों के होते लाले।।
उनके सुख की खातिर आते,अपने देश अकाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२।।

उजले-उजले तन होते पर,नीयत खोटी।
होते उनके हाथ,हमारी होती चोटी ।।
मुख खोला तो सर पर अपने,नहीं बचेंगे बाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३।।

धन धनवानों का बढ़ता है,दिन-दिन दूना।
नित निर्धन के सपनों को है,लगता चूना।।
पोर-पोर इनका बिकने को,है उनकी टकसाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४।।

होता उसका जीवन-यापन ख़ूँ पी-पी के।
इधर तिमिर है,उनके घर पर,दीपक घी के।।
हथिया सूरज-चाँद-सितारे,शैताँ है खुशहाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५।।

इठला-इठला कर चलते हैं,झूठ हठीले।
निज को पर्वत समझ रहे हैं,बौने टीले।।
अपने मन में ऊँचाई के,भ्रम को रखते पाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६।।

कोई ना हो ,रोक -टोक कर पाने वाला।
उनका मन है,होवे हर इक मुख पर ताला।।
तुरत दबा देते वे अपने,उठते हुए सवाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७।।

क्या बतलाएँ,अभी पड़ेगा क्या-क्या खोना।
अब जाने क्या,हाल गुलिस्ताँ का है होना ।।
फौज उलूकों की है बैठी,आ के इक-इक डाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८।।

आए अंधों की महफिल में,पुजते काने ।
कहाँ शिकायत लिखवाएँ,जब उनके थाने।।
उनके आघातों पर हँसना,होना हमें निहाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९।।

उनकी रग-रग में ख़ूँ के संग,हिंसा दौड़े ।
ये निर्बल हैं,वो बलशाली,हाथ हथौड़े ।।
जो जयकार न की उसकी तो,देगा फोड़ कपाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१०।।

झूठों का दरवार लगा,बस झूठे जाते ।
दूर-दूर से देखो उनको,शोर मचाते ।।
भूले से हम जो जा पहुँचे,देंगे हमें निकाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।११।।

भेद भरे ही होते आए हैं बँटवारे ।
अपने हक को,वे खाते हैं ले चटकारे।।
भरी-भरी हैं देहें उनकी,अपने तन कंकाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१२।।

मतलब साधे,वह आश्वासन देकर झूठा ।
दिखला देता है हमको वह,फिर अंगूठा।।
मतलब होगा तो आश्वासन,देगा पुनः उछाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१३।।

कुछ मत कह, वह चाहे जितना पीटे-मारे ।
मुख खोला तो,उगले उसका मुख अंगारे ।।
आँसू की इक बूँद न टपके, चाहे हो बेहाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१४।।

सभी बिके हैं, कौन करेगा उस पर शंका ।
सच सुबके है, झूठे का ही बजता डंका।।
मौन खड़ा है सिहर गया सच,झूठा है वाचाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१५।।

काम रहे तक,नित-नित उसका आना-जाना।
काम नहीं तो, काम रहा है आँख चुराना ।।
व्यर्थ गया हर बार हमारे उर में उठा उबाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१६।।

अपनेपन का लगा मुखौटा,घर पर आता ।
घुसकर घर में फिर जी भर वह,लूट मचाता।।
जो चुपचाप नहीं लुटता है,उससे उसे मलाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१७।।

कड़वापन है नख-शिख लेकिन,मीठी वाणी।
नहीं कहीं है और अजूबा, ऐसा प्राणी ।।
हिय होता ना होने जैसा, होता पेट विशाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१८।।

लगी हाट ही दिखती चहुँदिश,जिधर निहारो।
वे धन खनका कर कहते हैं, मोल उचारो ।।
होता इन्सानों का सौदा, पाते माल दलाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१९।।

कदम-कदम पर छल के बल वे,हम से जीते।
लपक लिए हैं उनने जग के,सभी सुभीते ।।
अपने मुख पर काली कालिख,उनके भाल गुलाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२०।।

आते लेकर नूतन-नूतन, नित-नित घातें ।
हर दम उगला करते वे, विस्फोटक बातें ।।
वे आते तो उनके संग-संग,आ जाता भूचाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२१।।

रहते उनके पास लूट के,सौ हथकंडे ।
देवालय का,माल उड़ाते आए पंड़े ।।
देखे सदियों ने निज नयनों,उनके कपट कमाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२२।।

वह कहता है,लूट हमारी है लाचारी ।
नामुमकिन है,करे घास से घोड़ा यारी।।
वाह-वाह कहिए जब शैताँ,देता गजब मिसाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२३।।

बैठ मचानों पर कुछ कायर, वीर कहाते ।
था साहस तो, उतर धरा पर नीचे आते।।
कितने खतरे साथ हमारे, दिशा-दिशा दोनाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२४।।

बँधे हाथ,मुख,आजादी का राग अलापें ।
अपने श्रम के औजारों पर,उनकी छापें ।।
जो अपने हाथों में है वो,अपनी नहीं कुदाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२५।।

कपट छुपा कर,सम्मुख आकर ,कहते भाई ।
हैं युग-युग से करते आए, कुटिल कुटाई ।।
नयनों में गीलापन लेकर,आते हैं घड़ियाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२६।।

वह चाहे,उसके हों होटल, पाँच-सितारे ।
आम आदमी,चाहे घुट-घुट दिवस गुजारे।।
मिले पेट को रोटी तो हो,ठुमरी और खयाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२७।।

खाल-खास का,पल-पल उत्सव सा है होता।
खाता खुशियों के सागर में,नित-नित गोता ।।
आम आदमी का इक-इक पल,जीवन का जंजाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२८।।

लगी चोर के हाथ हमारे घर की चाबी ।
रोक सकेगा कोई कैसे,यहाँ खराबी ।।
अपने घर का कोना-कोना, लेगा चोर खंगाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।२९।।

उनका भारी भार उठाना, है लाचारी ।
निरख-निरख हलकापन उनका,मन है भारी।।
कितना भारी जीवन होगा, दिवस लगे जब साल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३०।।

गद्दा-तकिया सिर्फ़ विदेशी, उनको होना ।
हमें शिलाओं पर ही पड़ता आया सोना ।।
हमको केवल मुख ढकने को,मिलता नहीं रुमाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३१।।

खेल रहा है उनका हर दम, ख़ून-खराबा ।
अलग-अलग हैं,उनके कारण,काशी-काबा।।
उनकी तेगें,कंठ हमारे, होना हमें हलाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३२।।

क्या कहिएगा, हुई व्यवस्था कैसी लूली ।
अब लाखों की,लूट कहाती है मामूली ।।
नई सदी के द्वार खड़ा है, कैसा काल कराल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३३।।

आयातित है गाड़ी उसकी, सरपट भागे ।
बचना! उसको जीवन अपना,सस्ता लागे।।
हम जिसको कहते अनहोनी, होती होनी टाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३४।।

जिसको अपना समझा,उसने,गरल परोसा ।
अगर करे तो,कोई किस पर करे भरोसा ।।
तूफ़ाँ के हो गए यार हैं, निज नौका के पाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३५।।

होती हर दम उनके सम्मुख,अपनी थाली ।
हमको खाने मिलती केवल,उनकी गली ।।
पूरे तन में आग लगाती, उठी पेट की ज्वाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३६।।

उनके सम्मुख,सारे मंतर पड़ते ढीले ।
टप-टप टपके जहर ज़ुबाँ से,हैं जहरीले।।
डसने को तत्पर हैं चहुँदिश,फन फैलाए व्याल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३७।।

देखो इतरा कर चलते हैं,साहब-जादे ।
तम का शासन,भटकी दुनिया,कौन दिशा दे।।
फैशन में आ गया पतन तो,लेगा कौन सँभाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३८।।

कौन खरा है,कौन यहाँ पर होता खोटा ।
जो श्रम करता,वह कहलाता आया छोटा।।
बड़ा वही कहलाता जो है,होता बड़ा अलाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।३९।।

महल-दुमहलों की ड्योढी पर बैठे चंदा ।
सूरज के भी गले पड़ा शैताँ का फंदा ।।
तम के किरण-किरण पर पहरे,रोती फिरे मशाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४०।।

लगे दूर से, बड़े ज्ञान की चर्चा होती ।
रुपया-पैसा,हीरा-पन्ना,माणिक-मोती ।।
चोरी-चुरफंदी की बातें,चोरों की चौपाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४१।।

हैं पग-पग पर,जाल बिछे हम को उलझाने।
मनभावन लगते हैं उनके ताने-बाने ।।
जो उलझा,फिर नहीं निकलता, ऐसा मायाजाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४२।।

अब जीवन का मतलब है बस खा-पी,खा-पी।
हमाहमी की मची हुई है आपाधापी ।।
कहाँ गई है खो मानवता, कौन करे पड़ताल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४३।।

गैरों से भी गैर आज अपने हैं होते ।
अपने पथ में,कदम-कदम पर काँटे बोते।।
लाख जतन कर देखो लेकिन,रहती है खुरचाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४४।।

गर बोलें तो, उनके छल के सौ अफसाने ।
पर बोलें तो, लगते तत्छण शोर मचाने ।।
हाथ हुकूमत का डंडा ले, देते हमें हँकाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४५।।

रंग सभी बदरंग हुए, उनकी थू-थू से ।
आकुल-व्याकुल साँस हुई जाती बदबू से।।
जो खुद हैं थू-थू के लायक,फैला रहे उगाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४६।।

दोष हमारा,साथ सरलता अपने जो थी ।
भेद बढाने वाली उसने लिख दी पोथी ।।
कुछ ऊँचे कुल के कहलाते,कुछ होते चंडाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४७।।

हमको श्रम के फल का अंश ज़रा सा दे के।
फुदक रहे वे,अपने श्रम का फल ले-ले के।।
रस अपने जीवन का लेकर, उनका रूप रसाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४८।।

नज़र जमाए वे बैठे हैं, थैली - थैली ।
यहाँ चलन में, लूटो-खाओ वाली शैली।।
आपाधापी भरी भीड़ में,किसको किसका ख्याल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।४९।।

अपनी कुटिया का हर तिनका,वो हर लेंगे।
उनसे बचकर ,कितना,कब तक,भाग सकेंगे।।
उनकी धरती,उनका अम्बर, है उनका पाताल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५०।।

झूले झूलें वे, अपना है काम झुलाना ।
ज़रा थमे तो,देखो उनका गाल फुलाना ।।
मन की पीर दिखाने मन की,परतें नहीं उकाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५१।।

ढेर लगा धन का रक्खा है, क्यों घबराते ।
सही-गलत जो जी चाहे सो,करते जाते ।।
गलत किया,पद खोया लेकिन,दूजे रोज़ बहाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५२।।

उनकी तूती, उनका राग रटे हर तोता ।
उनके आगे मोल हमारा कुछ ना होता ।।
हम तो जैसे फटे टाट हैं, वे पश्मीने शाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५३।।

देना होगा, कर साँसों पर अगर लगेगा ।
जीने-पीने, बूँद-बूँद जल मोल मिलेगा।।
राजा जी के कुआँ-बावड़ी,राजा जी का ताल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५४।।

हमें डराने, डंडे वाले गुंडे पाले ।
रखो लगाकर,अपने-अपने मुख पर ताले।।
मुख खोले कुछ बोले ऐसी, किसकी यहाँ मजाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५५।।

पड़ जाए गर,उनकी महफ़िल हमको जाना।
जो वह बोलें, राग हमें वह होगा गाना ।।
उनके ढोल,मजीरे उनके, है उनकी खड़ताल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५६।।

जी भर खेला, मोल दिया फिर औना-पौना ।
अधिक नहीं कुछ,खल को इन्साँ एक खिलौना।।
एक तरफ रहता सन्नाटा,दूजी ओर धमाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५७।।

घात लगाए रहते हैं, बैठे खा जाने ।
हमें देख मुख उनके लार लगे टपकाने ।।
उनसे ऐसे नाते जैसे, मूषक और बिडाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५८।।

वह कहते जो गलत,गलत हैं,भले सही हों ।
नहीं जरूरी, जैसे दिखते वैसे ही हों ।।
शेरों वाले लगा मुखौटे, बनते शेर सियाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।५९।।

वे हँसते हैं,सुन-सुन अपने दुख की गाथा ।
जो हम हँस दें, उनका तुरत ठनकता माथा ।।
उनका मन है,दें वे दुनिया,अपने साँचे ढाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६०।।

करवट लेता काल,हाल को,यूँ उलझाए ।
असल चले है पीछे-पीछे, मुँह लटकाए ।।
आगे-आगे सीना ताने, चलता है नक्काल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६१।।

गली-गली में, घूमा करते हैं व्यभिचारी ।
दिशा-दिशा में, गूँजे है खल की किलकारी।।
मन में भरा छिछोरापन तो, दुनिया लगे छिनाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६२।।

कौन सुनेगा अपनी,सब उनकी ही माने ।
उनके सँग थे,झूठे पर मीठे अफसाने ।।
अपने सच को वे झूठों से,देते तुरत झुठाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६३।।

उनके घर पर इतना,उनकी पुस्तें खाएँ ।
इसीलिए वे जहाँ-तहाँ पर,आग लगाएँ ।।
मजदूरों के मुख मुरझाते, जब होती हड़ताल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६४।।

हमें हिदायत यह रहती,हम मुख ना खोलें ।
उनको हक़ है,जो जी चाहे सो वे बोलें ।।
हमको निश-दिन सहना होता,उनके मुख का झाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६५।।

उनका मंतर एक यही बस, छीनो-छीनो ।
मटके बाजी,टिकट लाटरी, खुले कसीनो ।।
दीनों की दुनिया को लूटे, बनता दीन-दयाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६६।।

किया दफन सच,और झूठ बन बैठा राजा ।
होता किसको,सच की ताकत का अंदाजा ।।
सच मुखरित हो गया अगर तो,होगा बड़ा बवाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६७।।

खाना उनकी, गाली सँग जहरीली बातें ।
पहले उनकी,फिर उनके घोड़ों की लातें ।।
उनको होते महल-हवेली,हमको बस घुड़साल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६८।।

नहीं जरूरी,चमक रहा हो सोना चोखा ।
बार-बार मुख उसका, दे-दे जाता धोखा ।।
भोला दिखने वाला होता, बड़ा गुरु-घंटाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।६९।।

होता उनके कर-कमलों में, सार समूचा ।
लुटता अपना गाँव, गाँव का कूचा-कूचा।।
हमको सार हीन बचता है, लेते सार निथाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७०।।

जीवन निर्धन का, सेठों का सूद चुकाने ।
दिनभर खटते, तब मिल पाते हैं कुछ दाने ।।
रोज़ रात अधपेटे सोते, बिलख बाल-गोपाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७१।।

कुछ ना बिगड़े,झंझावातों में महलों का ।
डेरा तंबू में जिनका है, भारी झोका ।।
छोटा सा झोका आता तो,उड़ जाते तिरपाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७२।।

रोज़ पखेरू, खोज धरातल की कर हारे ।
दूर बहुत हैं , जो उनको छूने थे तारे ।।
जिन पर भारी रहा भरोसा, वे पर हुए निढाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७३।।

इधर पुकारो, तो मुँह फेर उधर को जाता ।
अहं बड़ा था, मेल भला कैसे हो पाता ।।
बीचों-बीच खड़ी कर रक्खी,नफ़रत की दीवार।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७४।।

अपने खेमे में कैसे ना रहे हताशा ।
उनके मन-मन,मान न अपना तोला-माशा।।
उनके आते,छलक-छलक छल,जाता है तत्काल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७५।।

कपट काज को,हर पल रहता वह संजीदा ।
उसे चाहिए,सुबह-शाम नित माल-मलीदा ।।
निगला अपना माल गटागट,बैठा करे जुगाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७६।।

वे निकले हैं,अमन-चैन को आग लगाने ।
दुबके बैठे हैं सब सज्जन, जान बचाने ।।
दुर्जन चौराहों पर आकर,ठोक रहे हैं ताल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७७।।

क्या करना है, रोने दे गर दुनिया रोती ।
लूट करे,फिर मिले माल पर, लीपा-पोती ।
यहाँ-वहाँ में बड़ी विसमता,इत टोटा,उत टाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७८।।

तत्पर रहते हैं तूफ़ान खड़ा करने को ।
कहते-'मम चरणों में अपना माथा टेको ।।
ऐसे पनप रहे दल खल के,ज्यों जल में शैवाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।७९।।

आम आदमी, दंश समय के निश-दिन झेले ।
एक निवाले की खातिर, सौ पापड़ बेले ।।
वह भी ले-ले खास लपक के,ऐसा काला काल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८०।।

बढ़ता निर्धन देख, दिखाने लगें सलाखें ।
बड़े-बड़े घर, बड़े घराने, चढ़ती आँखें ।।
फूटी आँखों नहीं सुहाते, जो गुदड़ी के लाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८१।।

उनके दल में शामिल नभ के सारे तारे ।
बार-बार है होती हिस्से हार हमारे ।।
उनके कंठ सुशोभित होती,बार-बार जयमाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८२।।

माल हमारे पर वह मारा करता पंजा ।
निकल न पाता,जिस पर उसने कसा शिकंजा।।
खाली है निर्धन की हंडी,भरे-भरे भँड़साल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८३।।

सब हर लेता,जगह न देता तिल धरने की ।
बात-बात में, बात करे है वह जूते की ।।
उसके सँग मतवाले गज हैं, उसके सँग गजपाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८४।।

करते आए, अपने दुख को वे अनदेखा ।
उनकी अति का,लिखा रखा सदियों का लेखा।।
व्यथा कथा जन-साधारण की,चलना है चिरकाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८५।।

आखेटक आखेट करेंगे, लालच दे के ।
अपना इक-इक दोष रखेंगे,सर दूजे के ।।
बलि का बकरा खोज रहे वे,ले कर में करवाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८६।।

नज़र ज़रा ना आम आदमी पर है डाली ।
शासन उनका है तो उनकी शान निराली ।।
उनका आसन है सोने का,जड़े हुए हैं लाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८७।।

हाथ हुकूमत आई तो नाचेंगे नंगे ।
होंगे जो भी काम सभी होंगे अड़बंगे ।।
जिनके सँग-सँग खल के दल हैं,बन बैठे भूचाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८८।।

बेशर्मों को नाक कटाने में क्या घाटा ।
हँस-हँस कहते-'नाक कटी पर घी तो चाटा'।।
सन्नाटा है दिशा-दिशा में,उनकी देख कुचाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।८९।।

मानव निर्मित नर्क बहुत हैं, ये जग भोगे ।
कहे लुटेरा-'हम लूटेंगे, क्या कर लोगे' ।।
उसके हाथों रोज़-रोज़ का, लुटना लिक्खा भाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९०।।

वह आता है हमें लूटने, बन कर भोला ।
वह जब जाता, भरा हुआ होता है झोला ।।
मुख पर मस्कानों को ओढ़े,अंतस है विकराल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९१।।

चहुँदिश खास चहकता फिरता,पाकर पैसा ।
मत पूछो,जन-साधारण का, जीवन कैसा ।।
दिवस वेदना से परिपूरित, रातें भी बदहाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९२।।

हर पल अपना,एक करे जो, ख़ून-पसीना ।
भरा अभावों से उसका है, दूभर जीना ।।
भूख सरलता के हिस्से में,कपटी मालामाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९३।।

मैदानों में, होता आया, खेल निराला ।
देखें किसके गले विजय की पड़ती माला।।
उनके हाथ थमाए खंजर,हमें नहीं दी ढाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९४।।

देखा उसका रंग बदलना, गिरगिट हारा ।
मौसम सा उठता गिरता है, उसका पारा ।।
आती है उसके पैरों को,हर शतरंजी चाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९५।।

हाथ सरलता के रहते, रीते के रीते ।
टेढ़ा,अपने टेढ़ेपन से, ये जग जीते ।।
रुतबा ज्ञान वान का पाए,बजा-बजा कर गाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९६।।

उसे परखना सहज नहीं,कब क्या कर डाले ।
वह आता है, लिए हाथ में, बरछी-भाले ।।
शैताँ के हो गए नयन हैं, अंगारों से लाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९७।।

इन्सानों सा रूप लिए, शैताँ रहता है ।
अपने हक हथिया कर वो किस्मत कहता है।।
उसके उदर समा जाती है, अपनी रोटी-दाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९८।।

शहद पगे से बोल बोलकर, वह बहकाए ।
अपने हक पर,वह बैठा है, घात लगाए ।।
कहकर यार पुकारा करता,बिछा राह में जाल।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।९९।।

मिला न उसको,उसके हक़ का, दाना-पानी ।
आम आदमी के जीवन की, यही कहानी ।।
हो सतयुग या त्रेता,द्वापर,या होवे कलिकाल ।
सितम सहो चुप रहकर वर्ना, खिंच जाएगी खाल।।१००।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

 

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