Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख़ून सारा पी चुके तो

 

जो मिले वो नाम के दाने हुए।
भूख से ही यार याराने हुए।।

 

ख़ून सारा पी चुके तो चल दिए।
इस क़दर वो आज बेगाने हुए।।

 

थे सभी सोए हुए बस इसलिए।
हक़ हुकूमत का लिए काने हुए।।

 

वो मुखौटे कर के चस्पाँ आ गए।
अजनबी लगते हैं पहचाने हुए।।

 

हम उम्मीदे-दोस्ती ले के चले।
वो चले श्मशीर को ताने हुए।।

 

जिस जगह हर रोज़ होती लूट है।
'सिद्ध' देखो उस जगह थाने हुए।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

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