कितनी मासूम है, कितनी नादान है।
मेरी क़ातिल है वो, और अनजान है।।
जिसने घायल किया, वो है तीरे-नज़र।
जिसने मारा मुझे, उसकी मुस्कान है।।
बेख़ुदी में पिए जा रहा ज़ाम हूँ।
मय के जहरीलेपन की न पहचान है।।
कितने सपने हुए खंडहर क्या कहें।
किसके पूरे हुए सारे अरमान हैं।।
दुखती रग-रग दुुखाती है जी को मिरे।
और कोई नहीं, वो मेरी जान है।।
जीना मुश्किल बहुत, 'सिद्ध' जाँ के बिना।
मरना भी तो नहीं कोई आसान है।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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