Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कूचे-कूचे फन फैलाए

 

 

कूचे-कूचे फन फैलाए नाग यहाँ।
लग ना जाए आँखों, निरन्तर जाग यहाँ।।

 

रखना यारो अपने कानों पर संयम।
गाए जाते रोज़ विषैले राग यहाँ।।

 

बहुत जरूरी यहाँ निरन्तर निगरानी।
ले भागेंगे तेरे हक़ को काग यहाँ।।

 

उनके सम्मुख सम्मानों की गठरी है।
हैं जिनके दामन में सौ-सौ दाग यहाँ।।

 

नहीं हवाओं का जहरीलापन रोका।
ना महकेंगे फूल, न होंगे बाग यहाँ।।

 

रहे 'सिद्ध' गर चौकन्ने तो तय जानो।
शैतानों की नहीं लगेगी लाग यहाँ।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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