कुछ हैं शोले, कुछ कपास हैं।
रहते यारो पास-पास हैं।।
रोया करते साधारण जन।
हँसते केवल ख़ास-ख़ास हैं।।
जिनके अंतस में कालिख है।
उजले उनके ही लिबास हैं।।
खंजर छुपा निकट आते वो।
लेकर शब्दों में मिठास हैं।।
उनके कपट किए बेपर्दा।
ख़ुश थे जो,वो अब उदास हैं।।
है तो लाखों की आबादी।
'सिद्ध' आदमी सौ-पचास हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध',
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