Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्या हुए उन से जुदा

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

 

क्या हुए उन से जुदा, शाखे-शिकस्ता हो गए।
पा सके मंज़िल नहीं, औरों का रस्ता हो गए।।

 

जो हक़ीक़त थी हमारी, थी उन्हें ख़्वाबे-गरां।
यूँ नशेमन यार जिन्दां, रफ्ता-रफ्ता हो गए।।

 

ढह गया घर, दब गए अरमाँ मिरे अब के इधर।
पर महल उनके उधर, पहले से पुख्ता हो गए।।

 

है हमारे हाल से, उन को नहीं मतलब ज़रा।
क्या बताते किस कदर, हैं हाल खस्ता हो गए।।

 

उनकी महफ़िल में भला कैसे हमें मिलती जगह।
'सिद्ध' के दामन में यारा, सौ-सौ नुक़्ता हो गए।।

 

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