दो नंगे लड़ते हैं,
मैं लहुलुहान होता हूँ,
मैं कुछ कहता हूँ,
दोनों मेरे मुँह पर थूकते हैं।
यही है उनकी लड़ाई का
असल लक्ष्य,
वे अपने लक्ष्य से
कभी नहीं चूकते हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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दो नंगे लड़ते हैं,
मैं लहुलुहान होता हूँ,
मैं कुछ कहता हूँ,
दोनों मेरे मुँह पर थूकते हैं।
यही है उनकी लड़ाई का
असल लक्ष्य,
वे अपने लक्ष्य से
कभी नहीं चूकते हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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