Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मौन से लगता है यूँ

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

मौन से लगता है यूँ, के मौत शायद हो गई,
ज़िन्दगी है तो मगर, उसकी कवायद हो गई।

 

आलमे-फ़साद है, के क़ैद हैं घर में सनम,
और घर की देहरी ही, आज सरहद हो गई।

 

जो हमारे बीच में, रहती रही हर एक पल,
आज वो इंसानियत, क्यों कर नदारद हो गई।

 

अब जहाँ पद है वहाँ पर, इसलिए है खींच-तान,
आज के इन्सान की, पहचान ही पद हो गई।

 

अब चलो हम उठ खड़े हों, जूझने शैतान से,
है सहा इतना कि अब, सहने की है हद हो गई।

 

वेदना जब-जब मिली है, आप को, हम को यहाँ,
'सिद्ध' तब शैतान की, हर साँस गदगद हो गई।

 

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