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मीठे-मीठे झूठ सुहाते

 

Thakurdas Siddh

 

वर्षों पहले लिखा गया एक गीत।
( रचना दिनांक 08-10-1996 )
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मीठे-मीठे झूठ सुहाते,
लगा झूठ का रोग।
जो सच बोला, हो जाएँगे,
आग बबूला लोग।।
जिनकी हैं काली करतूतें,
उनकी जय-जयकार।
ऐसे काले युग का यारो,
कुछ तो हो उपचार।।१।।
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छीन छपट कर माल पराया,
इतराता शैतान।
चहुँदिश चालाकों की चलती,
लुटता है ईमान।।
उसे न मिलता हक़ का तिनका,
जो होता हक़दार।
ऐसे काले युग का यारो,
कुछ तो हो उपचार।।२।।
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झूठी कसमें, झूठे वादे,
झूठी जिसकी प्रीत।
आता है वह धोखा देने,
बनकर मन का मीत।।
मोहक वादों वाला आकर,
छल जाता हर बार।
ऐसे काले युग का यारो,
कुछ तो हो उपचार।।३।।
***
साथ-साथ करते हैं अब तो,
चोर-सिपाही भोज।
दाग़ लगे दामन में कितने,
क्या तू लेगा खोज।।
करती नित नूतन घोटाले,
ये अपनी सरकार।
ऐसे काले युग का यारो,
कुछ तो हो उपचार।।४।।
***
सच मिमियाता, झूठ गरजता,
ठीक नहीं यह बात।
वह दिन जाने कब आएगा,
छल की होगी मात।।
विजय-पताका झूठ रोपता,
जाता है सच हार।
ऐसे काले युग का यारो,
कुछ तो हो उपचार।।५।।
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