Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे अंदर भी रहता है शैतान

 

मेरे अंदर भी रहता है शैतान
जैसे सब के अंदर।

 

शायद आप नहीं जानते,
शायद इसीलिए नहीं जानते
कि लड़ता रहता हूँ मैं उस से
प्रतिदिन
प्रति पल।

 

मैं जानता हूँ कि शैतान अमर है
अपराजेय भी।

 

उसके और मेरे बीच
एक ऐसा युद्ध है
जिसमें पूरे समय
बस उसे ही चलाने हैं तीर।

 

मेरे पास हैं ही नहीं
कोई शस्त्र-अस्त्र,
और वह अदृश्य भी तो है।

 

मेरी भूमिका तो यह है
कि स्वयं को बचाना है
बचाते रहना है उसके तीरों से
बस।

 

वह चलाता है तीर
कभी भी
किसी भी दिशा से।

 

कैसा विरोधाभास है यह,
कि वह मुझमें
और मुझे घेरे हुए भी है।

 

छोड़कर विरोधाभास का चिंतन
मुझे तो चौकन्ना रहना है,
जागते हुए,
सोते समय भी।

 

मेरे सामने
बस दो ही विकल्प हैं,
एक यह
कि हो जाऊँ मैं उस से पराजित
स्वीकार लूँ अधीनता,
या दूसरा यह
कि लड़ता रहूँ तमाम उम्र।
शैतान को जीता नहीं जा सकता।

 

शैतान को जीता नहीं जा सकता
किन्तु असंभव नहीं है
शैतान के सामने
खड़े रहना शैतान की तरह
अपराजेय।

 

मैं हूँ,
शैतान है,
और दूसरा विकल्प है।

 

शायद आप नहीं जानते
कि मेरे अंदर भी रहता है शैतान,
और वह मेरे रहते तक रहेगा।

 

शैतान बहुत चालक है,
वह जिसे कर देता है पराजित,
उसे डाल देता है इस ख़ुशफहमी में
कि उसके अंदर नहीं है शैतान।

 

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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