Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नफ़रतों के दौर का है ये असर शायद

 

वह दिखावे के लिए ही दिल मिलाता है ।
सिर्फ़ जिससे काम कोई,उससे नाता है।।

 

आज है सर पर शिकारी बाज का पंजा।
अब अमन का मन परिंदा फड़फड़ाता है।।

 

नफ़रतों के दौर का है ये असर शायद ।
बात सुनकर प्रीत की,वह रूठ जाता है।।

 

वायदों की खोलकर दूकान वो बैठा ।
हर किसी को ख़्वाब मोहक वह दिखाता है।।

 

हाथ उसका है उधारी के लिए फैला ।
इस जनम की किस जनम में वह चुकाता है।।

 

सब रखो मेरी तरह उसके चरण में सर ।
गान चमचों का कहे,वह ही विधाता है।।

 

अपने-अपने झूठ को सब कह रहे हैं सच।
कौन किस इन्सान का सच जान पाता है।।

 

एक पल भी हम सुकूँ की साँस ले लें तो।
देख कर अपना सुकूँ,वह तिलमिलाता है।।

 

वह बदलता वक़्त की मानिंद करवट बस।
मुँह फुलाता, 'सिद्ध' उसको जब जगाता है।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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