Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नक़ाबों में हैं जो

 

ग़म हैं हज़ारों, मगर, कुछ न पूछो।
हम आएँगे मिलने,अगर, कुछ न पूछो।।

 

कहाँ थे,कहाँ हैं,कहाँ जा रहे हम।
अँधेरों का है ये,सफ़र, कुछ न पूछो।।

 

इधर क्या है, केवल,आँसू का दरिया।
क्या-क्या है लेकिन,उधर, कुछ न पूछो।।

 

हर हाल में लूट लेगा वो तुझको।
उसमें है क्या-क्या,हुनर, कुछ न पूछो।।

 

अख़बार के साथ आती है दहशत।
रहती है क्या-क्या,ख़बर, कुछ न पूछो।।

 

रहा रात भर चीत्कारों का आलम।
दिखाएगी क्या-क्या,सहर, कुछ न पूछो।।

 

यहाँ कौन रहता हमारे शहर में।
जो नफ़रत का उगले,ज़हर,कुछ न पूछो।।

 

हमारे पड़ोसी नक़ाबों में हैं जो।
अरे 'सिद्ध' उनकी,नज़र,कुछ न पूछो।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

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