चूहा बहुत छोटा प्राणी है,
लेकिन स्वभाव से आतंकवादी है।
आता है,
सबकुछ कुतरता है,आतंक मचाता है,और भूमिगत हो जाता है।
न कुर्ता छोड़ता है न पायजामा,
न बीबी की साड़ी और ब्लाउज छोड़ता है।
शैतान अपनी शैतानियों से बाज नहीं आता है।
कुछ नहीं छोड़ता,
यहाँ तक कि जूते भी खाता है।
न खेत छोड़ता है न खलिहान,
परेशान है उससे हर इन्सान।
वे अपने छोटे-छोटे पंजों से
अपनी छोटी-छोटी छातियाँ ठोक कर
हर कुतरन की जिम्मेदारी ले रहे हैं।
अपनी ढीठता का परिचय दे रहे हैं।
आकार में छोटे जरूर हैं चूहे
लेकिन बड़े शैतान हैं।
इन आतंकवादी चूहों से
सिर्फ़ हम-तुम ही नहीं
हमारे नेता जी भी परेशान हैं।
यह डगमगाती राजनीति का दौर है
इसलिए उनके पास हर दल की टोपी है,
और उन्हें फिक्र है
कि हर दल की टोपी सलामत रहे।
चूहा चाहे तो शेष सारा देश कुतरता रहे।
हम उन्हें मारते हैं
लेकिन उनकी संख्या घटती ही नहीं।
ये चूहे
जो हमारे घर-आँगन में उत्पात मचाते हैं,
हमें लगता है कि ये आतंकवादी चूहे
पड़ोसी भिजवाते हैं।
हमें पता है कि ये चूहे
सीमा पार से आते हैं।
हमने देखा है उन्हें
पड़ोसी की दीवार से कूदते-उतरते,
नोंचते सद्भाव को,
चैन-ओ-अमन कुतरते।
हमने अपने पड़ोसी से शिखर-वार्ता की,
लेकिन वार्ता व्यर्थ गई।
वार्ताएँ व्यर्थ ही जाती हैं,
जब दिलों में द्वेष
और बिलों में चूहे हों।
हम व्यर्थ हुई वार्ता के बिल चुका रहे हैं,
और आतंकवादी चूहे अपनी बिलों से
अपने नुकीले दाँत दिखा रहे हैं।
चूहे निरन्तर आ रहे हैं।
आते जा रहे हैं।
आते जा रहे है!
आते जा रहे हैं!!
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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