Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पहले तो वह आत्मा बेचा किया

 

पहले तो वह आत्मा बेचा किया।
फैसला फिर उसने इक तरफ़ा किया।।

 

हैं बुराई के पुलंदे लोग जो।
रुष्ठ हैं, क्यों मैंने बेपर्दा किया।।

 

पेश दुश्मन सा वो आया रात-दिन।
जिसको मैंने यार था अपना किया।।

 

ना रहा दिल खोल के मंजूर मिलना।
जब भी आया पास वो, नखरा किया।।

 

देख कर उसके सितम, सब मौन थे।
खोल दी मैंने ज़ुबाँ, इतना किया।।

 

मैं गया महफ़िल से, उसके बाद फिर।
हर ज़ुबाँ ने मेरा ही चर्चा किया।।

 

'सिद्ध' ने क़ातिल को क़ातिल क्या कहा।
कह रहे हैं लोग, तू ने क्या किया।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

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