क्या हुआ,जो कसमें झूठी,वादे झूठे हैं।
वाक् कौशल के उनके पाखंड़ अनूठे हैं।।
काले कृत्यों पर उनने,थे डाल रखे परदे।
हमने पर्दाफाश किया तो,हमसे रूठे हैं।।
द्रौण किए जो माला धारण,घूम रहा है।
उस माला में पिरो रखे,कितने अँगूठे हैं।।
उनके रहते तक अपना,प्रवेश रहा वर्जित।
आए अपने हाथ निवाले,लगते जूठे हैं।।
ताजमहल की सुन्दरता को जी भर देखो।
मत देखो उन हाथों को,जो दिखते ठूंठे हैं।।
हमें निरख कर,उनके हाथ जहाँ जाते हैं।
और नहीं कुछ 'सिद्ध',वहाँ ख़ंजर के मूठे हैं।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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