ठाकुर दास 'सिद्ध'
त्याग दिया किस कारण तुम ने
प्रीत-प्यार की परिपाटी को।
नफ़रत के विष-बीज चाहिए
नहीं देश की शुभ माटी को।।
मानवता मंडी में बेची
दानवता को कंठ लगाया।
इसी लिए हर फूल चमन का
दिखता मुरझाया-मुरझाया।।
वहीं उगलते आग जिह्वा से
जहाँ देखते भाईचारा।
सूख रहा है हर हिरदे से
इस कारण अपनापन सारा।।
छद्म वेश में रिपु घुस गए
आओ हम उन से टकराएँ।
उनके कारण ही आहत हैं
भारत माँ की रक्त-शिराएँ।।
भाई अपनी सूझ-बूझ से
देश के दुश्मन को पहचानो।
भेद-भाव की बात करे जो
उसे देश का दुश्मन जानो।।
देश तोड़ने को तत्पर जो
भारत माँ का पूत नहीं है।
प्रीत हमारी परिपाटी है
बाहर से आहूत नहीं है।।
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