प्रीत कर और जीत ले, मैं हारने तैयार हूँ।
तू अगर शैतान तो, मैं आग की बौछार हूँ।।
छल-कपट लेकर चलेगा, गर तू अपने साथ में।
साथ तेरे मैं नहीं चल पाऊँगा, लाचार हूँ।।
झूठ मीठा, मान पाए, दौर ऐसा चल पड़ा।
बोलता हूँ सच हमेशा, इसलिए बेकार हूँ।।
हूँ महकता फूल, अपने दोस्तों के वास्ते।
दुश्मनों के वास्ते, मैं तेज़-तीखा ख़ार हूँ।।
जब जहाँ भी दे मुझे आवाज, मैं आ जाऊँगा।
'सिद्ध' यूँ अस्तित्व में, इस पार हूँ, उस पार हूँ।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY