Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पूछिए तो आईने से

 

दिन दहाड़े लूट, रातों का न आलम पूछिए।
पूछिए तो आईने से, कौन हैं हम पूछिए।।

 

वास अपने पास ही, शैतान का है दोस्तो।
खौफ़ खाती इन हवाओं से न मौसम पूछिए।।

 

सिर्फ़ इतना पूछिए वो आम है या ख़ास है।
पूछिए उस शख़्स से तो कौन सा ग़म पूछिए।।

 

सरहदों को वेदना उसकी लगी है लाँघने।
किस लिए वो हँस रहा है आज बेदम पूछिए।।

 

नापिएगा रास्ता, गर वाहवाही चाहिए।
जब कहेगा,सच कहेगा, 'सिद्ध' से कम पूछिए।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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