नीति की नहीं,
अब राजनीति में,
राज की बातें।।
नेता-नेता की,
सिर्फ़ यही फिक्र है,
कुर्सियाँ मिलें।
देख कुर्सियाँ,
नयन में चमक,
चेहरे खिलें।।
खोट ओट में,
वोट पर नज़र,
ताज की बातें।
नीति की नहीं,
अब राजनीति में,
राज की बातें।।
छूटती नहीं,
जो लत है लूट की,
आ लगी उन्हें।
लुटेरे नहीं,
उन्हें अगर कहें,
और क्या कहें।।
शर्म त्याग दी,
अब शेष नहीं हैं,
लाज की बातें।
नीति की नहीं,
अब राजनीति में,
राज की बातें।।
ठाकुर दास 'सिद्ध',
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