रामनामी में,
शायद शैतान हो,
साधु वेश में।।
कुटिया नहीं,
सत्ता की काजल की,
कोठरी भाती।
साधु-संत हैं,
वैभव की लालसा,
ख़ूब सताती।।
हाल निराला,
बड़े-बड़े अजूबे,
मेरे देश में।
रामनामी में,
शायद शैतान हो,
साधु वेश में।।
गाँव-गाँव जा,
जहर उगलते,
साधु कहाते।
लाज न आती,
देश का,समाज का,
नाम लजाते।।
मौन ताकता,
आज का समाज है,
पशोपेश में।
रामनामी में,
शायद शैतान हो,
साधु वेश में।।
ठाकुर दास 'सिद्ध',
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY