Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साधु वेश में

 

रामनामी में,
शायद शैतान हो,
साधु वेश में।।

 

कुटिया नहीं,
सत्ता की काजल की,
कोठरी भाती।
साधु-संत हैं,
वैभव की लालसा,
ख़ूब सताती।।

 

हाल निराला,
बड़े-बड़े अजूबे,
मेरे देश में।
रामनामी में,
शायद शैतान हो,
साधु वेश में।।

 

गाँव-गाँव जा,
जहर उगलते,
साधु कहाते।
लाज न आती,
देश का,समाज का,
नाम लजाते।।

 

मौन ताकता,
आज का समाज है,
पशोपेश में।
रामनामी में,
शायद शैतान हो,
साधु वेश में।।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

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