निर्धन दिन भर दर-दर भटका,रोया निर्धन सारी रात।
धन वालों का खोटा सिक्का,खनका खन-खन सारी रात।।
दरवाजे पर दस्तक देता रहा रात भर बारम्बार।
हमें निगलने शैताँ बैठा,अपने आँगन सारी रात।।
उसकी रात रही रंगीली,सने ख़ून से जिसके हाथ।
घायल का यह हाल रहा है,रोया तन-मन सारी रात।।
बेटी बिदा हुई निर्धन की,जब लेकर कोरा आशीष।
सास-ननद के दिन भर ताने,रूठा साजन सारी रात।।
मदिरा पान किया साजन ने,उसे नहीं फिर कुछ भी होश।
प्रेम-पिपासा लेकर बैठी,जागी दुल्हन सारी रात।।
जब मिल बैठे चोर-सिपाही,हुआ देश का ऐसा हाल।
कटता रहा 'सिद्ध' बेखटके,चंदन का वन सारी रात।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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