एक भूखा गिर पड़ा था लड़खड़ाके।
इसलिए चारों तरफ़ गूँजे ठहाके।।
इस तरह था हास्य में डूबा ज़माना।
सच कहो,फिर देख लो तुम,रूठ जाना।।१।।
आ गई अँगड़ाइयाँ लेती जवानी।
चाहिए उसको महकती रातरानी।।
है भयावह महफ़िलों का जगमगाना।
सच कहो,फिर देख लो तुम,रूठ जाना।।२।।
मैं लगा दूँ आग,तू थोड़ी हवा दे।
द्वेष के ओ देवता,तू मुस्कुरा दे।।
ताप की ख़ातिर जला इक आसियाना।
सच कहो,फिर देख लो तुम,रूठ जाना।।३।।
रह गया,जो आरज़ू का बीज बोया।
दे गए बादल दगा तो आम रोया।।
ख़ास का तो हो गया मौसम सुहाना।
सच कहो,फिर देख लो तुम,रूठ जाना।।४।।
कुछ खिलाड़ी,शेष सारे हैं खिलौने।
और उनके खेल सारे हैं घिनौने।।
आपका तो काम है ताली बजाना।
सच कहो,फिर देख लो तुम,रूठ जाना।।५।।
ठाकुर दास 'सिद्ध',
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