Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शायरी का जायका

 

आदमी के मुँह लगा,आदमी का जायका।
हो गया कड़वा बहुत,ज़िन्दगी का जायका।।

 

दौड़ वैभव के लिए,इस कदर हावी हुई।
भूल बैठा आदमी,सादगी का जायका।।

 

अंधकारों से घिरा,आदमी यूँ आज का।
उम्र भर मिलता नहीं,रोशनी का जायका।।

 

गंदगी से भर चली,हर तरफ आबो-हवा।
फिर भला कैसे मिले,ताजगी का जायका।।

 

मन हमारा हो न हो,है ये मजबूरी मगर।
जिस जगह भी जाइए,गंदगी का जायका।।

 

नफ़रतों के दौर में,हर क़दम पे दुश्मनी।
खुशनसीबी से मिले,दोस्ती का जायका।।

 

'सिद्ध' की सुन के ग़ज़ल,लोग यूँ कहते मिले।
है बहुत कड़वा लगा,शायरी का जायका।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

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