Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सिद्ध के दोहे

 

जहर पकाया जतन से,जहर परोसा थाल।
'सिद्ध' मिलावट ने किया,हर घर का ये हाल।।१।।

 

दीपक-बाती-तेल हो,'सिद्ध'भले हो आग।
आँखें भी तो चाहिए,काफी नहीं चिराग।।२।।

 

'सिद्ध'कभी मन भर करे,केवल कभी छटाक।
तौल-तौल यारी करे,यार बड़ा चालक।।३।।

 

नहीं मिला तो फासले,मिला माल तो मेल।
'सिद्ध'अनूठा है बड़ा,राजनीति का खेल।।४।।

 

बहती रस की धार है,'सिद्ध' हमारे पास।
लेकिन उनका हाल ये,अधर अधूरी प्यास।।५।।

 

'सिद्ध' धरा थर-थर करे,खल की आँखों ख़ून।
चीता सा अपराध है,कछुआ सा कानून।।६।।

 

जितनी तगड़ी चौकसी,उतने चौकस चोर।
'सिद्ध' पलक झपकी नहीं,लेते माल बटोर।।७।।

 

अमन रहे तक अनमना,ढोया 'सिद्ध' विषाद।
पुलक उठा खल का हिया,सम्मुख देख फ़साद।।८।।

 

'सिद्ध' देख अचरज बड़ा,मालदार का हाल।
फूट-फूट रोता फिरे,फँस तिसना के जाल।।९।।

 

मैं जो मिलने को गया,छिटक खड़ा वह दूर।
'सिद्ध' कहे कारण बता,वह कहता दस्तूर।।१०।।

 

कमर समर को रे कसी,दल बल दोनों ओर।
'सिद्ध' सोच जनता करे,चुनें कौन सा चोर।।११।।

 

घायल पड़ा कपोत है,बाजी मारा बाज।
ख़ून-खराबा हर तरफ, 'सिद्ध' दिखे है आज।।१२।।

 

'सिद्ध' नज़र जाती जहाँ,यही नज़ारा पेश।
लीला भ्रष्टाचार की,लीला सारा देश।।१३।।

 

है अपनी मुस्कान पर,उसकी निकली आह।
'सिद्ध' अगर वो मीत है,तो ये बड़ा गुनाह।।१४।।

 

देह देहरी पर रखी,मन-पंछी आकाश।
है ऐसा मिलता नहीं, 'सिद्ध' रोज़ अवकाश।।१५।।

 

'सिद्ध' सरलता का पढ़े,क्यों कर कोई पाठ।
आँखों से हटते नहीं,देखे ठग के ठाठ।।१६।।

 

रहा पतीला खदबदा,गलती होगी दाल।
गलती होगी 'सिद्ध' जो,पूछा कठिन सवाल।।१७।।

 

संबंधों के 'सिद्ध' अब,तने-तने से तार।
पद के मद में यार है,मिलने से इनकार।।१८।।

 

'सिद्ध' चले विपरीत या,हवा चली विपरीत।
गाए अपने मीत ने,तानों वाले गीत।।१९।।

 

सूनेपन में मन मिला,जो खोया था हाट।
'सिद्ध' कहे ये बात है,सीधी-सरल-सपाट।।२०।।

 

स्वर्ण-सिंहासन घुन लगा,देख अचंभा होय।
'सिद्ध' ख़ूब हा-हा हुई,हँसना-रोना दोय।।२१।।

 

कही-सुनी में भेद है, 'सिद्ध' अलग मुख-कान।
लाभ-लाभ रसना रटी,भला-भला का भान।।२२।।

 

'सिद्ध' आग को घेरकर,करें आग की बात।
हट जाएगा शीत ये,कट जाएगी रात।।२३।।

 

पुरस्कार पैसों मिले,पैसों मिले मुरीद।
'सिद्ध' कौन धनवान है,जो ले जलन खरीद।।२४।।

 

ऐसी सरपट जिन्दगी, 'सिद्ध' न आती रास।
नहीं किसी के वास्ते,समय किसी के पास।।२५।।

 

'सिद्ध' नहीं कम पीर हो,औषध धरे हजार।
हरे जखम के पीर को,हरे हमारा यार।।२६।।

 

सब चुप हैं या सोच कर,दूजा देगा बोल।
'सिद्ध' पीट खल यों रहा,जैसे ढोली ढोल।।२७।।

 

देख नज़ारा 'सिद्ध'का,लगा ठनकने माथ।
शेर हिफ़ाजत के लिए,कुत्ते लाया साथ।।२८।।

 

'सिद्ध' सिपाही के लिए,डपट रहा है चोर।
हाथ जोड़ सूरज खड़ा,कहता कह दे भोर।।२९।।

 

रंग दिशाओं में भरा,मन का रंग उड़ेल।
'सिद्ध' कहे इस काज को,नहीं समझना खेल।।३०।।

 

रहता खाली खोखला,दया करी दी पीर।
'सिद्ध' भरे या पीर ने,करुणा-साहस-धीर।।३१।।

 

अगर एक काँटा चुभे,किसी एक के पाँव।
दुआ समझ या बद्दुआ, 'सिद्ध' कराहे गाँव।।३२।।

 

'सिद्ध' सार की बात को,कौन सुनेगा आज।
भीड़ वहाँ पर जा खड़ी,जहाँ खड़ा लफ्फाज।।३३।।

 

सच लगता सर दर्द है,झूठ फायदेमंद।
'सिद्ध' रहा फल फूल अब,हर घर में छरछंद।।३४।।

 

माना तलवे चाटता,जाने कब ले काट।
है उसने पानी पिया, 'सिद्ध' अनेकों घाट।।३५।।

 

'सिद्ध' देख खल का दखल,हरे हिया का चैन।
जो कायर हों मूँद लें,अपने-अपने नैन।।३६।।

 

दाने अपने नाम के,हैं उसके गोदाम।
'सिद्ध' उसे अब चाहिए,दूने-दूने दाम।।३७।।

 

दवा बनाकर रे किया,उसने पैदा रोग।
माल कमाने के लिए, 'सिद्ध' जरूरी योग।।३८।।

 

'सिद्ध' परस्पर चल रही,चहुँदिश कीच उलीच।
ताल मेल मिलता कहाँ,बस चोरों के बीच।।३९।।

 

खड़ा गुरू के सपने,चेला करे गुरूर।
'सिद्ध' कहे,कहता फिरे,हीरे को बेनूर।।४०।।

 

वही जगाए और को,जो जागा हो आप।
'सिद्ध' अकारथ शेष का,जाग-जाग का जाप।।४१।।

 

कुछ हासिल होना नहीं, 'सिद्ध' जतन कर लाख।
तब दमकल किस काम की,जब सब होया राख।।४२।।

 

'सिद्ध' सुमन हँसने लगे,बाग-बाग था बाग।
सुन कोकिल की कूक को,आगबबूला काग।।४३।।

 

बना हजामत चल दिया,किया हजम हर माल।
'सिद्ध' इसे खलता कहे,दुनिया कहे कमाल।।४४।।

 

लगी 'सिद्ध' को अटपटी,साधो जग की रीत।
बाकी सब से नफ़रतें,महाठगनि सों प्रीत।।४५।।

 

'सिद्ध' फुदकना और हो,जाने कितनी देर।
पंछी बिलकुल बेख़बर,रहा अहेरी हेर।।४६।।

 

नहीं मुहाना दीखता,लंबी तंग सुरंग।
'सिद्ध' परे जो डर करे,चले हमारे संग।।४७।।

 

उधर ख़ून की लालसा,इधर 'सिद्ध' परचून।
डग इसने बाहर रखा,उसने डाला भून।।४८।।

 

'सिद्ध' गया जिस गैल वह,दहशत जाती फैल।
नेता जी का पूत है,हक़ होना बिगड़ैल।।४९।।

 

सच को विरला है गहे,गहने झूठ समूह।
'सिद्ध' कहे सीधी-सरल,दुनिया कहे दुरूह।।५०।।

 

 

 

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

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