सितम की रात कभी गुजरेगी।
जलेगी आग तभी गुजरेगी।।
दाग दामन में लगे हैं कितने।
गिनने बैठे तो सदी गुजरेगी।।
नींद आँखों से यहाँ रूठे पर।
उनकी हर रात भली गुजरेगी।।
ये जो राहों में बिछी हैं आँखें।
ख़्वाब ये है कि खुशी गुजरेगी।।
क्यों न इतरा के चलेगी यारा।
जो हवा छू के कली गुजरेगी।।
होगी बस एक वही अब रोशन।
उनके घर से जो गली गुजरेगी।।
'सिद्ध' चुपचाप सहे जाएगा।
तो कोई बात सही गुजरेगी।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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