ढह रहे हैं घर हमारे देखिए ।
आप हँसकर यह नज़ारे देखिए।।
भूख से बालक बिलखता रो रहा।
माँ दिखाती चाँद-तारे देखिए ।।
तूफ़ान सागर में रहे क्या वास्ता ।
झील में उतरे सिकारे देखिए ।।
लोग हैं फुटपाथ पर लेटे हुए ।
जी रहे हैं बेसहारे देखिए ।।
वो लबों पर पोतता अपना लहू।
रूप अपना यूँ निखारे देखिए।।
वो मनाते फिर रहे रंगरेलियाँ ।
ख़्वाब अपने हैं कँवारे देखिए।।
यार सा वह पेश आता है मगर।
पीठ पर ख़ंजर न मारे देखिए।।
हो रहे उत्पात के पीछे का सच।
कर रहे हैं वो इशारे देखिए।।
जो सियासत में गए जयकार हुई।
लग रहे हैं आज नारे देखिए ।।
टूटते हैं ख़्वाब उसकी आँख के।
आदमी हिम्मत न हारे देखिए।।
ताक में शैतान बैठा आज जो ।
'सिद्ध' वह हमको निहारे देखिए।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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