(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
ये बैठे इस पार तने हैं।
वो भी तो उस पार तने हैं।।
बात नहीं है कुछ भी यारो।
बेमतलब बेकार तने हैं।।
नाजुक हैं जाने कब टूटें।
संबंधों के तार तने हैं।।
गैरों का तनना जायज था।
जो हैं अपने यार तने हैं।।
पात-पात मुरझाया सा है।
जड़ सूखी,लाचार तने हैं।।
बात नहीं मानेंगे अपनी।
देखो जी सरकार तने हैं।।
'सिद्ध' इन्हें समझाओ कोई।
कर बैठे तकरार तने हैं।।
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