Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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थी क़यामत खेज़ इक मुस्कान

 

कर रहा किस का यहाँ तू गान मेरे सामने।
नाम बतला, रख पता-पहचान मेरे सामने।

 

आईने में अक्स मेरा चाहिए होना जहाँ,
आ गई है आज मेरी जान मेरे सामने।

 

मैं अगर मरता नहीं तो और क्या करता भला,
थी क़यामत खेज़ इक मुस्कान मेरे सामने।

 

राहे-उलफ़त में बिछे अंगार यारा कब नहीं,
राह होती क्यों भला आसान मेरे सामने।

 

जख़्म मेरे देखकर तू पीटता है तालियाँ,
ये उछलना बंद कर शैतान मेरे सामने।

 

था लिफ़ाफ़ा बंद लेकिन पढ़ लिया मज़मून को,
जो सितमगर ने रखा फ़रमान मेरे सामने।

 

थी यहाँ बाज़ार की रौनक न जाने क्या हुआ,
दीखता है दूर तक वीरान मेरे सामने।

 

एक सुर में लोग जिसको कह रहे थे सूरमा,
'सिद्ध' आ के हो गया बेजान मेरे सामने।

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

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