ले रहा है वक़्त करवट,तुम ज़मीं को थाम लो।
ये जहाँ कुछ भी कहे,अपनी समझ से काम लो।
ये भले इन्सान को,शोभा नहीं देता सनम।
खास को सर पर बिठाओ,चूसने को आम लो।।
रूप क्या पाया,तुम्हारे,नाज़ो-नखरे हैं गजब ।
ये ग़लत है,मुस्कुराने,का सनम तुम दाम लो।।
सिरफिरों की महफ़िलों में,सिर्फ़ नफ़रत का चलन।
सिरफिरों की है हिदायत,प्रीत का ना नाम लो।।
बेवकूफी पाप की तुम,कर रहे हो किस लिए।
पाप ना धुल पाएगा,तुम घूम चारों धाम लो ।।
ख़ूँ-ख्वार हैं वो इसलिए,बात सुनते ही नहीं।
'सिद्ध' कहता है मुहोब्बत का सुहाना जाम लो।।
ठाकुर दास 'सिद्ध'
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