Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उसका सारा आसमाँ

 

उसका सारा आसमाँ, एक छत के नाम पर।
रोज़ आँसू पी रहा, एक लत के नाम पर।।

 

मान लो, ईमान लो, ले लो जिस्म या ज़मीर।
बिकता सभी कुछ यहाँ, तिज़ारत के नाम पर।।

 

खुश हुआ शैतान है, कर के उसकी चीर-फाड़।
उसमें सरलता मिली, जब ग़लत के नाम पर।।

 

प्रेम था, सद्भाव था, आदमी था आदमी।
बात ये होने लगी, अब विगत के नाम पर।।

 

अवसरों के वास्ते, अधिकारियों के पूत हैं।
हर क़दम अवरोध है, मातहत के नाम पर।।

 

छल-कपट का दौर है, बैर-नफ़रत रात-दिन।
लिख दिया है 'सिद्ध'ने, इस जगत के नाम पर।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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