(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
याँ मामला हर एक उलझाया गया फिर,
यूँ मजहबी उन्माद भड़काया गया फिर।
क्या आज सूरज को लगा कोई ग्रहण है,
जो दोपहर में ही अँधेरा छा गया फिर।
ये विषधरों का काफ़िला अपने शहर में,
क्या विष-वमन के वास्ते लाया गया फिर।
सद्भाव के दामन को जिस ने नोंच डाला,
गुण गान उसका ही यहाँ गाया गया फिर।
शैतान की शैतानियत की जय कहा कर,
इन्सान को ये पाठ रटवाया गया फिर।
जो गीत गाया 'सिद्ध' ने इंसानियत का,
शैतान है जिस से न अपनाया गया फिर।
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