Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यार आगे अब हमारा जो सफ़र हो

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

 

यार आगे अब हमारा जो सफ़र हो।
आरज़ू है, और भी कुछ बेहतर हो।।

 

हम हिचकने के नहीं हैं, एक पल भी।
रास्ता चाहे हमारा पुरख़तर हो।।

 

हों अगर फ़ौलाद से अपने इरादे।
क्यों नहीं हर वार उसका बेअसर हो।।

 

तीर छोड़े जिस तरफ़ भी वो सितमगर।
सामने हर तीर के, अपना ज़िगर हो।।

 

हर ख़बर उस की हमारे पास आती।
वो हमारे हाल से क्यों बेख़बर हो।।

 

है गुनाहों से नहीं हँसना ज़रा कम।
'सिद्ध' कोई सामने गर आँख तर हो।।

 

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